Monday, November 18, 2013

साए_की_तरह_आई_वोह..उस परी की याद मे

उस परी की याद मे... फिर के नाम
उस खूबसूरत चाँद की याद मे जिसे देख चांदनी भी शर्माये......

छोड़ गयी मुझे इस बेरहम दुनिया मे,
दीन का  उज़ाला लूट  लिया
रात का अँधेरा छोड़ दिया 
साए की तरह आई वोह ....

लोगों का कहना है 
चांदनी बड़ी खुबसूरत  है
रौशनी को छोड़, लोग अँधेरे को पूजते  है
हमे क्या पता, दीन या रात कौन खुबसूरत
हमे तो बस अँधेरे में जीना है


छोड़ यादों को आया इस दूर
भीड़ में, इस अनजाने शहर मे 
लेकिन यादों ने साथ ना छोडा 
साए ने भी साथ ना छोडा

जला डाला तेरी तस्वीर इस सौच मे
की तेरी याद अब ना आईगी
पर कैसे मीठा सकू उस तसवीर को
जो मेरे रूह में बस गई है

दिल को मनाया कई बार
पर दिल मे एक कसक सी लगी है
एक अजब सी बेचैनी है
वह ना जीने देथी है ना मरने

अजनबी गलियो में भटक रहा हू
अपने ही घर का पता ढूँढ रहा हू
इस कश्म्कश में ना जाने क्या कर बैठा
ख़ुद पराया हो गया हू

किसी हमदर्द ने पूछा मेरे इस दर्द का कारण
लब्ज़ो में ना बता सका दिल का हाल
कोशिश करता तो भी क्या कहता

व्यर्थ की आशा है फीर भी यह अरमान लिए
घूम रहा हू कि एक एक बार तुमसे मिल सकूँ
अपने इस लाचारी का इलाज कर सकूँ
मेरे इस अधूरे जीवन को पूरा कर सकूँ
अपने आप से मिल सकू

साए की तरह आई वोह…

- अभिलाष चन्द्र