चल पडा हूँ यारों उसकी याद में
ज़िन्दगी के नए सफ़र में
ना कोई किनारा है , ना कोई मंजिल
ना कोई दोस्त है, ना हमदम
फिर भी
चल पड़ा हूँ यारों उसकी याद में
ना दिन का सूरज है, ना रात की चांदनी
ना दील की धड़कन, ना खवाबों की बारात
दिन है, मगर रात का अँधेरा है
फिर भी
चल पड़ा हूँ यारों उसकी यादों में
मंजिल पुराना है , मगर सफर अंजना है
नए लोग नए सफर, मगर साथ किसी ने ना दिया
खवाबों का काफिला है, पर अकेला हू
फिर भी
चल पड़ा हूँ यारों उसकी याद में
सोचा था कोई साथ होगा जिसे अपना कह सकूं
मगर इस भीढ़ में सब अनजाने निखले
सब अपने ही दुन में है, बहुतों से पुछा पर किसी ने जवाब नही दिया
फिर भी
चल पड़ा हूँ यारों उसकी याद में
अब तो बस चलते ही जाना है
कोई साथ हो या ना हो,
रात हो या दिन हो,
सूरज की गर्मी हो या चांदनी की मिठास
मंजिल दूर है
फिर भी
चल पड़ा हूँ यारों उसकी याद में
1 comment:
बहल जाओगे तुम ग़म सुनके मेरे
लिखना चाहा क़ई बार इस दिल की दास्तान
क्या करु दिल ने धड़कना ही छोड़ दिया
कलम की स्याही नहीं है तो क्या हूआ
इस तूटे दिल से खून आज भी बह रहा है
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